pub-7907189912424792 बलुवाना न्यूज पंजाब : कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचन्द का गोदान एक बेहतरीन उपन्यास है,, उनके समय पर रही समस्याएें जिसमें गरीबों की दयनीय स्थिति, अमीरों के द्वारा गरीबों को लूटने का षडयन्त् और #जातिवाद का बहुत ही सुन्दरता से मार्मिक वर्णन है,, देखा जाये तो आज भी ये बुनियादी समस्याऐं वर्तमान में भी जस की तस बनी हुई हैं,, इसी उपन्यास से - मातादीन #पंडित का सिलिया #चमारिन से प्रेम हो गया है,, वह उसे अपने घर बिन विवाह किये रखता है,, इससे खिन्न होकर एक दिन सिलिया के माता-पिता चाचा और भाई सूरज ढलने से पूर्व मातादीन को घेर लेते हैं,, यहाँ सिलिया के परिवार वाले जिद पर होते हैं, वह मातादीन से कहते हैं या तो तू चमार बन जा या फिर सिलिया को पंडिताईन बना कर रख,, हमारी ऐसे बेइज्जती न करवा,, इस पर विवाद बढ़ जाता है,, सिलिया के परिवार वाले पकड़कर जबरदस्ती एक मीट का टुकड़ा मातादीन के मुँह से छुआ देते हैं,, और शोर मचाते हुए चले जाते हैं,, इस बात पर इधर मातादीन के बिरादरी के लोग उसे धर्म और बिरादरी से निष्कासित कर देते हैं,, गाँव के लोग कहते हैं- मातादीन तेरा धर्म भ्रष्ट हो गयो है तोए अब घोर प्रायश्चित करनो पड़ेगो,, तूझे जा चमारिन सिलिया को घर में न रखने पड़ेगो,, मातादीन संकट में पड़ जाता है, धर्म बिरादरी से अलग होके जाये कहाँ और सिलिया भी तो उसके बच्चे की माँ बनने वाली है उसे कहाँ छोड़े,, घोर दुविधा में फँसा होता है,, पिता की डाँट खाके बहुत सुनने के बाद वह धर्म शुद्धिकरण प्रायश्चित के लिए तैयार हो जाता है,, बहुत खुशामद के बाद काशी के कुछ पंडित प्रायश्चित कराने को तैयार हो जाते,, मातादीन का काफी खर्चा हो जाता है,, उसे फिर से ब्राह्मण बना दिया जाता है,, उस दिन बहुत बड़ा हवन हुआ, बहुत सारे ब्राह्मणों को भोजन कराया, मन्त्र श्लोक पढ़े गये,, मातादीन को शुद्ध गोबर और गौमूत्र खाना-पीना पड़ा,, गोबर से उसका मन पवित्र हो गया, गौमूत्र से उसके अशुचिता के कीटाणूँ मर गये,, लेकिन एक तरह से प्रायश्चित से सचमुच वह पवित्र हो गया,, हवन के अग्नि-कुण्ड में उसकी मानवता निखर गयी,, हवन की ज्वाला के प्रकाश से उसने धर्म-सतम्भों को परख लिया,, उस दिन से उसे धर्म के नाम से चिढ़ हो गयी,, उसने जनेऊ उतार फेंका और पुरोहितों को गंगा में डुबो दिया,, अब वह पक्का खेतिहर था,, जबकि विद्वानों ने उसका ब्राह्मणत्व स्वीकार कर लिया था,, लेकिन अब जनता उसके हाथ से पानी तक नहीं पीती है, जनता उससे लगन का विचार, मूहर्त पूछती हैं,, लोग उसे पर्व के दिन दान दक्षिणा भी देते हैं, लेकिन कोई भी उसे अपना बर्तन छूने नहीं देते हैं,,, जिस दिन मातादीन और सिलिया माँ - बाप बनते हैं,, उस दिन मातादीन बहुत खुश होता है और जमके भांग पीता है,, बच्चे के प्रति उसका प्रेम दृण जागृत होता है,, लेकिन मातादीन के साथ हुई घटना के बाद से सिलिया और मातादीन अलग अलग रहते हैं,, सिलिया होरी के घर के पास झोपड़ी में रहती है,, जब सिलिया रोजना बाहर मजूरी करने जाती है तो मातादीन बाहर से ही बच्चे को टकटकी लगाये जीभर के देखता रहता है,, लेकिन वह उसे गोद खिलाने से डरता है, कि कहीं सिलिया को पता न चल जाये और उससे ज्यादा नाराज न हो जाये,, उसका बच्चा अब डेढ़ साल का हो गया है, बहुत शरारती है,, बहुत प्यारा, सुन्दर छवि,, पास पड़ोस के लोग उसे बहुत प्यार करते हैं,, एक दिन खूब ओले गिरे,, सिलिया घास लेकर बाजार गयी हुई थी,, रामू (बच्चे का नाम) अब बैठने और बकवाँ चलने लगा था,, आँगन में पड़े बिनौले(ओले) बतासे समझ कर दो चार खा लिए,, रात को तेज ज्वर आ गया,, सुबह निमोनिया हो गया,, तीसरे दिन संध्या ढले सिलिया की गोद में बच्चे के प्राण निकल गये,, मातादीन उस दिन खुल गया,, परदा होता है हवा के लिए,, आँधी आती है तो परदा उठा कर रख दिये जाते हैं ताकि आँधी के साथ उड़ न जाये,, उसने शव को दोनों हथेलियों पर उठा लिया और अकेला नदी के किनारे तक ले गया,, आठ दिन तक उसके हाथ सीधे न हो सके,, उस दिन वह जरा भी नहीं लजाया, जरा सा भी नहीं झिझका,, और किसी ने कुछ कहा भी नहीं,, वल्कि उसके साहस और दृणता की तारीफ की,, होरी ने कहा यही मरद का धरम है,, जिसकी बाँह पकड़ी, उसे क्या छोड़ना,, धनिया ने होरी की बाँह पकड़ी और आँखे तरेरकर कहा मत बखान करो जी जलता है,, यह मरद है? मैं ऐसे मरद को नामरद कहती हूँ,, जब बाँह पकड़ी थी, तब क्या दूध पीता था, कि सिलिया ब्राह्मणी हो गयी थी? एक महीना बीत गया था,, सिलिया फिर से मजूरी करने लगी थी,, सिलिया ने खेत से जौ के बाल चुनकर टोकरी में रख लिए और घर जाना चाहती थी,, सहसा किसी की आहट पाकर वह चौंक पड़ी,, पीछे से आकर सामने मातादीन खड़ा हो गया और बोला कब-तक रोये जायेगी सिलिया! रोने से वह वापस तो न आ जायेगा, ये कहते ही वह रो पड़ा,, सिलिया आवाज संभालकर बोली, आज इधर कैसे आ गये? इधर से जा रहा था तुझे बैठा देखा तो चला आया,, सिलिया मातादीन से तुम तो उसे खेला भी न पाये,, नहीं सिलिया, एक दिन खेलाया था,, 'सच? 'सच,!' मैं कहाँ थी? तू बाजार गयी थी,, रोया तो नहीं था तुम्हारी गोद में? नहीं सिलिया हँसता था,, सच?' सच!' वस एक दिन ही खेलाया? हाँ! लेकिन देखने रोज आता था,, जी भरके देखता और चला जाता,, तुम्हीं को पड़ा था,, मुझे तो पछतावा होता है कि नाहक उस दिन उसे गोद में लिया,, यह मेरे पापों का दण्ड है,, सिलिया की आँखों में क्षमा झलक रही थी,, उसने टोकरी सर पर रखी और घर को चली,, मातादीन भी उसके साथ साथ चला,, सिलिया ने कहा मैं तो अब धनिया काकी के बरौठे में सोती हूँ,, अपने घर में अच्छा नहीं लगता,, धनिया रोज मुझे समझाती थी,, सच? हाँ जब मिलती तो समझाने लगती थी,, गाँव के समीप आकर सिलिया ने कहा अच्छा, इधर अपने घर जाओ, कोई पंडित देख न ले,, मातादीन ने गर्दन उठा कर कहा मैं अब किसी से नहीं डरता,, घर से निकाल देंगे तो कहाँ जाओगे? मैंने अपना घर बना लिया है,, सच? हाँ, सच!' कहाँ मैंने तो नहीं देखा? चल तो दिखाता हूँ,, दोनों आगे बढ़े,, होरी के घर के पास पहुँचे,, मातादीन उसके पिछवाड़े जाकर सिलिया की झोपड़ी के द्वार के सामने खड़ा हो गया और बोला यही हमारा घर है,, सिलिया ने अविश्वास क्षमा, व्यंग्य और दुःख भरे स्वर में कहा- ये तो सिलिया चमारिन का घर है,, मातादीन ने टाट का दरवाजा खोलते हुए कहा, ये मेरी देवी का मन्दिर है,, सिलिया की आँखें चमकने लगीं,, बोली मन्दिर है तो एक लोटा पानी उड़ेल कर चले जाओगे,, मातादीन ने उसके सर पर रखी टोकरी उतारते हुए कम्पित स्वर में कहा-नहीं सिलिया, अब तेरे शरण में रहूँगा, तेरी पूजा करूँगा,, जब तक प्राण हैं,, झूठ कहते हो? नहीं मैं तेरे चरण छूकर कहता हूँ,, सिलिया ने दियासलाई से कुप्पी जलाई,, एक किनारे मिट्टी का घड़ा था, दूसरी ओर चूल्हा था जहाँ दो तीन पीतल और लोहे के बाँसन मँजे पड़े थे,, बीच में पुआल बिछा था,, यही सिलिया का बिस्तर था,, मातादीन पुआल पर बैठ गया,, कलेजे में हूक-सी उठ रही थी,, जी चाहता था जोर से खूब रोये,, सिलिया ने उसकी पीठ पर हाथ रख कर कहा-तुम्हें कभी मेरी याद आती थी? मातादीन ने उसका हाथ अपने हृदय से लगा कर कहा-तू हरदम मेरी आँखों के सामने फिरती रहती थी,, तू भी मुझे कभी याद करती थी? 'मेरा तो तुमसे जी जलता था,, 'और दया नहीं आती थी? कभी नहीं,,! तो भुनेसरी की याद आती थी? अब गाली मत दो!,, मैं डर रही हूँ कि गाँव वाले क्या कहेंगे? जो भले आदमी हैं, वो कहेंगे यही इसका धरम है,, जो बुरे आदमी हैं, उनकी मैं परवा नहीं करता,, और तुम्हारा खाना कौन पकायेगा?' 'मेरी रानी सिलिया,,' 'तो ब्राह्मण कैसे रहोगे? 'मैं ब्राह्मण नहीं चमार ही रहना चाहता हूँ,,' सिलिया ने उसकी बाँहों में अपनी बाँहें डाल दीं,,,। बाल वनिता महिला आश्रम 20 दिसंबर की ही रात थी, (20 दिसम्बर 1704), "गुरु गोबिंद सिंह जी" ने अपने परिवार और 400 अन्य सिखों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया और निकल पड़े.. उस रात #भयंकर सर्दी थी और मावठे की बारिश हो रही थी.. सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया... बारिश के कारण नदी में उफान था.. कई सिख शहीद हो गए... कुछ नदी में ही बह गए... इस अफरातफरी में परिवार बिछुड़ गया.. माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए... दोनो बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे.. उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया .. अब उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे ... शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया.. अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में "2nd Battle Of Chamkaur Sahib" के नाम से जाना जाता है.. उस युद्ध में दोनों बड़े साहिबजादे और 40 अन्य सिख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए... उधर दोनो छोटे साहिबजादे जो 20 कि रात को ही गुरु जी से बिछुड़ गए थे माता गुर्जरी के साथ सरहिंद के किले में कैद कर लिए गए थे.. सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लो नही तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा.. दोनो साहिबज़ादों ने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया पर धर्म नही छोड़ा.. गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 से 27 दिसम्बर के बीच अपने 4 बेटे देश-धर्म की खातिर वार दिए.... माता गूजरी ने दोनो बच्चों के साथ ये ठंडी रातें सरहिन्द के किले में, ठिठुरते हुए गुजारी थीं.. बहुत सालों तक.. जब तक कि पंजाब के लोगों पे इस आधुनिकता का बुखार नही चढ़ा था.. ये एक सप्ताह यानि कि 20 से ले के 27 दिसम्बर तक लोग शोक मनाते थे और जमीन पे सोते थे .. #Vnita जो बोले सो निहाल .. सत श्री अकाल .. बाल वनिता महिला आश्रम #राधे_राधे हिंदू समाज के कुछ लोग आज इतने नीचे गिर गये है कि #गुरु_गोविंद_सिंह के #बलिदान को भूल कर के क्रिसमस डे मनाने लगे है सनातन धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने #महाबलिदान दिया जो युगो युगो तक याद रहेगा बताया कि चारों साहिबजादों और माता गुजरी का बलिदान सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए गर्व की बात है 10 लाख सैनिकों के सामने चमकौर के मैदान में हुए युद्ध के दौरान बारी-बारी से उनका बलिदान किया गया। #22दिसंबर 1704 को गुरु गोविंद साहिब के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और फिर जुझार सिंह शहीद हुए। #27_दिसंबर 1704 में गुरुगोविंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया।। शत शत नमन 🙏🙏 सिख धर्म के दसवें गुरु, खालसा पंथ के संस्थापक, शौर्य, वीरता, त्याग की मूर्ति, अद्वितीय नेतृत्व कौशल, सरबंसदानी पूजनीय #गुरु गोविन्द सिंह जी के गुरु गद्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। अज दे दिन कलगी धर पातशाह साहिब श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने माता गुजर कौर जी ते सिंघा दे कहिन ते परिवार समेत श्री आनंदगढ़ साहिब दा किला छड़ियां सी । कॉम तो अपना सरबंस वारण वाले दशम पातशाह गुरू गोविंद सिंह जी दे चरना च कोटि कोटि प्रणाम । ਅੱਜ ਦੇ ਦਿਨ ਕਲਗੀਧਰ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਸਾਹਿਬ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਮਾਤਾ ਗੁਜਰ ਕੌਰ ਜੀ ਤੇ ਸਿੰਘਾਂ ਦੇ ਕਹਿਣ 'ਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਸਮੇਤ ਸ੍ਰੀ ਅਨੰਦਗੜ੍ਹ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡਿਆ ਸੀ। ਕੌਮ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਸਰਬੰਸ ਵਾਰਨ ਵਾਲੇ ਦਸਮ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਜੀ ਦੇ ਚਰਨਾਂ 'ਚ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਣਾਮ 🙏 #ShahidiHafta #SriGuruGobindSinghJi #waheguruji ੴ #ਸਤਿਨਾਮ #ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ 🙏🙏 #gurugobindsinghji #GuruGaddiDiwas #MS_Kamboj #charsahibzade #gurugobindsinghji #GovindSingh #RSSorg #sikh #sikhhistory

Thursday, December 22, 2022

कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचन्द का गोदान एक बेहतरीन उपन्यास है,, उनके समय पर रही समस्याएें जिसमें गरीबों की दयनीय स्थिति, अमीरों के द्वारा गरीबों को लूटने का षडयन्त् और #जातिवाद का बहुत ही सुन्दरता से मार्मिक वर्णन है,, देखा जाये तो आज भी ये बुनियादी समस्याऐं वर्तमान में भी जस की तस बनी हुई हैं,, इसी उपन्यास से - मातादीन #पंडित का सिलिया #चमारिन से प्रेम हो गया है,, वह उसे अपने घर बिन विवाह किये रखता है,, इससे खिन्न होकर एक दिन सिलिया के माता-पिता चाचा और भाई सूरज ढलने से पूर्व मातादीन को घेर लेते हैं,, यहाँ सिलिया के परिवार वाले जिद पर होते हैं, वह मातादीन से कहते हैं या तो तू चमार बन जा या फिर सिलिया को पंडिताईन बना कर रख,, हमारी ऐसे बेइज्जती न करवा,, इस पर विवाद बढ़ जाता है,, सिलिया के परिवार वाले पकड़कर जबरदस्ती एक मीट का टुकड़ा मातादीन के मुँह से छुआ देते हैं,, और शोर मचाते हुए चले जाते हैं,, इस बात पर इधर मातादीन के बिरादरी के लोग उसे धर्म और बिरादरी से निष्कासित कर देते हैं,, गाँव के लोग कहते हैं- मातादीन तेरा धर्म भ्रष्ट हो गयो है तोए अब घोर प्रायश्चित करनो पड़ेगो,, तूझे जा चमारिन सिलिया को घर में न रखने पड़ेगो,, मातादीन संकट में पड़ जाता है, धर्म बिरादरी से अलग होके जाये कहाँ और सिलिया भी तो उसके बच्चे की माँ बनने वाली है उसे कहाँ छोड़े,, घोर दुविधा में फँसा होता है,, पिता की डाँट खाके बहुत सुनने के बाद वह धर्म शुद्धिकरण प्रायश्चित के लिए तैयार हो जाता है,, बहुत खुशामद के बाद काशी के कुछ पंडित प्रायश्चित कराने को तैयार हो जाते,, मातादीन का काफी खर्चा हो जाता है,, उसे फिर से ब्राह्मण बना दिया जाता है,, उस दिन बहुत बड़ा हवन हुआ, बहुत सारे ब्राह्मणों को भोजन कराया, मन्त्र श्लोक पढ़े गये,, मातादीन को शुद्ध गोबर और गौमूत्र खाना-पीना पड़ा,, गोबर से उसका मन पवित्र हो गया, गौमूत्र से उसके अशुचिता के कीटाणूँ मर गये,, लेकिन एक तरह से प्रायश्चित से सचमुच वह पवित्र हो गया,, हवन के अग्नि-कुण्ड में उसकी मानवता निखर गयी,, हवन की ज्वाला के प्रकाश से उसने धर्म-सतम्भों को परख लिया,, उस दिन से उसे धर्म के नाम से चिढ़ हो गयी,, उसने जनेऊ उतार फेंका और पुरोहितों को गंगा में डुबो दिया,, अब वह पक्का खेतिहर था,, जबकि विद्वानों ने उसका ब्राह्मणत्व स्वीकार कर लिया था,, लेकिन अब जनता उसके हाथ से पानी तक नहीं पीती है, जनता उससे लगन का विचार, मूहर्त पूछती हैं,, लोग उसे पर्व के दिन दान दक्षिणा भी देते हैं, लेकिन कोई भी उसे अपना बर्तन छूने नहीं देते हैं,,, जिस दिन मातादीन और सिलिया माँ - बाप बनते हैं,, उस दिन मातादीन बहुत खुश होता है और जमके भांग पीता है,, बच्चे के प्रति उसका प्रेम दृण जागृत होता है,, लेकिन मातादीन के साथ हुई घटना के बाद से सिलिया और मातादीन अलग अलग रहते हैं,, सिलिया होरी के घर के पास झोपड़ी में रहती है,, जब सिलिया रोजना बाहर मजूरी करने जाती है तो मातादीन बाहर से ही बच्चे को टकटकी लगाये जीभर के देखता रहता है,, लेकिन वह उसे गोद खिलाने से डरता है, कि कहीं सिलिया को पता न चल जाये और उससे ज्यादा नाराज न हो जाये,, उसका बच्चा अब डेढ़ साल का हो गया है, बहुत शरारती है,, बहुत प्यारा, सुन्दर छवि,, पास पड़ोस के लोग उसे बहुत प्यार करते हैं,, एक दिन खूब ओले गिरे,, सिलिया घास लेकर बाजार गयी हुई थी,, रामू (बच्चे का नाम) अब बैठने और बकवाँ चलने लगा था,, आँगन में पड़े बिनौले(ओले) बतासे समझ कर दो चार खा लिए,, रात को तेज ज्वर आ गया,, सुबह निमोनिया हो गया,, तीसरे दिन संध्या ढले सिलिया की गोद में बच्चे के प्राण निकल गये,, मातादीन उस दिन खुल गया,, परदा होता है हवा के लिए,, आँधी आती है तो परदा उठा कर रख दिये जाते हैं ताकि आँधी के साथ उड़ न जाये,, उसने शव को दोनों हथेलियों पर उठा लिया और अकेला नदी के किनारे तक ले गया,, आठ दिन तक उसके हाथ सीधे न हो सके,, उस दिन वह जरा भी नहीं लजाया, जरा सा भी नहीं झिझका,, और किसी ने कुछ कहा भी नहीं,, वल्कि उसके साहस और दृणता की तारीफ की,, होरी ने कहा यही मरद का धरम है,, जिसकी बाँह पकड़ी, उसे क्या छोड़ना,, धनिया ने होरी की बाँह पकड़ी और आँखे तरेरकर कहा मत बखान करो जी जलता है,, यह मरद है? मैं ऐसे मरद को नामरद कहती हूँ,, जब बाँह पकड़ी थी, तब क्या दूध पीता था, कि सिलिया ब्राह्मणी हो गयी थी? एक महीना बीत गया था,, सिलिया फिर से मजूरी करने लगी थी,, सिलिया ने खेत से जौ के बाल चुनकर टोकरी में रख लिए और घर जाना चाहती थी,, सहसा किसी की आहट पाकर वह चौंक पड़ी,, पीछे से आकर सामने मातादीन खड़ा हो गया और बोला कब-तक रोये जायेगी सिलिया! रोने से वह वापस तो न आ जायेगा, ये कहते ही वह रो पड़ा,, सिलिया आवाज संभालकर बोली, आज इधर कैसे आ गये? इधर से जा रहा था तुझे बैठा देखा तो चला आया,, सिलिया मातादीन से तुम तो उसे खेला भी न पाये,, नहीं सिलिया, एक दिन खेलाया था,, 'सच? 'सच,!' मैं कहाँ थी? तू बाजार गयी थी,, रोया तो नहीं था तुम्हारी गोद में? नहीं सिलिया हँसता था,, सच?' सच!' वस एक दिन ही खेलाया? हाँ! लेकिन देखने रोज आता था,, जी भरके देखता और चला जाता,, तुम्हीं को पड़ा था,, मुझे तो पछतावा होता है कि नाहक उस दिन उसे गोद में लिया,, यह मेरे पापों का दण्ड है,, सिलिया की आँखों में क्षमा झलक रही थी,, उसने टोकरी सर पर रखी और घर को चली,, मातादीन भी उसके साथ साथ चला,, सिलिया ने कहा मैं तो अब धनिया काकी के बरौठे में सोती हूँ,, अपने घर में अच्छा नहीं लगता,, धनिया रोज मुझे समझाती थी,, सच? हाँ जब मिलती तो समझाने लगती थी,, गाँव के समीप आकर सिलिया ने कहा अच्छा, इधर अपने घर जाओ, कोई पंडित देख न ले,, मातादीन ने गर्दन उठा कर कहा मैं अब किसी से नहीं डरता,, घर से निकाल देंगे तो कहाँ जाओगे? मैंने अपना घर बना लिया है,, सच? हाँ, सच!' कहाँ मैंने तो नहीं देखा? चल तो दिखाता हूँ,, दोनों आगे बढ़े,, होरी के घर के पास पहुँचे,, मातादीन उसके पिछवाड़े जाकर सिलिया की झोपड़ी के द्वार के सामने खड़ा हो गया और बोला यही हमारा घर है,, सिलिया ने अविश्वास क्षमा, व्यंग्य और दुःख भरे स्वर में कहा- ये तो सिलिया चमारिन का घर है,, मातादीन ने टाट का दरवाजा खोलते हुए कहा, ये मेरी देवी का मन्दिर है,, सिलिया की आँखें चमकने लगीं,, बोली मन्दिर है तो एक लोटा पानी उड़ेल कर चले जाओगे,, मातादीन ने उसके सर पर रखी टोकरी उतारते हुए कम्पित स्वर में कहा-नहीं सिलिया, अब तेरे शरण में रहूँगा, तेरी पूजा करूँगा,, जब तक प्राण हैं,, झूठ कहते हो? नहीं मैं तेरे चरण छूकर कहता हूँ,, सिलिया ने दियासलाई से कुप्पी जलाई,, एक किनारे मिट्टी का घड़ा था, दूसरी ओर चूल्हा था जहाँ दो तीन पीतल और लोहे के बाँसन मँजे पड़े थे,, बीच में पुआल बिछा था,, यही सिलिया का बिस्तर था,, मातादीन पुआल पर बैठ गया,, कलेजे में हूक-सी उठ रही थी,, जी चाहता था जोर से खूब रोये,, सिलिया ने उसकी पीठ पर हाथ रख कर कहा-तुम्हें कभी मेरी याद आती थी? मातादीन ने उसका हाथ अपने हृदय से लगा कर कहा-तू हरदम मेरी आँखों के सामने फिरती रहती थी,, तू भी मुझे कभी याद करती थी? 'मेरा तो तुमसे जी जलता था,, 'और दया नहीं आती थी? कभी नहीं,,! तो भुनेसरी की याद आती थी? अब गाली मत दो!,, मैं डर रही हूँ कि गाँव वाले क्या कहेंगे? जो भले आदमी हैं, वो कहेंगे यही इसका धरम है,, जो बुरे आदमी हैं, उनकी मैं परवा नहीं करता,, और तुम्हारा खाना कौन पकायेगा?' 'मेरी रानी सिलिया,,' 'तो ब्राह्मण कैसे रहोगे? 'मैं ब्राह्मण नहीं चमार ही रहना चाहता हूँ,,' सिलिया ने उसकी बाँहों में अपनी बाँहें डाल दीं,,,। बाल वनिता महिला आश्रम 20 दिसंबर की ही रात थी, (20 दिसम्बर 1704), "गुरु गोबिंद सिंह जी" ने अपने परिवार और 400 अन्य सिखों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया और निकल पड़े.. उस रात #भयंकर सर्दी थी और मावठे की बारिश हो रही थी.. सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया... बारिश के कारण नदी में उफान था.. कई सिख शहीद हो गए... कुछ नदी में ही बह गए... इस अफरातफरी में परिवार बिछुड़ गया.. माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए... दोनो बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे.. उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया .. अब उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे ... शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया.. अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में "2nd Battle Of Chamkaur Sahib" के नाम से जाना जाता है.. उस युद्ध में दोनों बड़े साहिबजादे और 40 अन्य सिख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए... उधर दोनो छोटे साहिबजादे जो 20 कि रात को ही गुरु जी से बिछुड़ गए थे माता गुर्जरी के साथ सरहिंद के किले में कैद कर लिए गए थे.. सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लो नही तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा.. दोनो साहिबज़ादों ने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया पर धर्म नही छोड़ा.. गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 से 27 दिसम्बर के बीच अपने 4 बेटे देश-धर्म की खातिर वार दिए.... माता गूजरी ने दोनो बच्चों के साथ ये ठंडी रातें सरहिन्द के किले में, ठिठुरते हुए गुजारी थीं.. बहुत सालों तक.. जब तक कि पंजाब के लोगों पे इस आधुनिकता का बुखार नही चढ़ा था.. ये एक सप्ताह यानि कि 20 से ले के 27 दिसम्बर तक लोग शोक मनाते थे और जमीन पे सोते थे .. #Vnita जो बोले सो निहाल .. सत श्री अकाल .. बाल वनिता महिला आश्रम #राधे_राधे हिंदू समाज के कुछ लोग आज इतने नीचे गिर गये है कि #गुरु_गोविंद_सिंह के #बलिदान को भूल कर के क्रिसमस डे मनाने लगे है सनातन धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने #महाबलिदान दिया जो युगो युगो तक याद रहेगा बताया कि चारों साहिबजादों और माता गुजरी का बलिदान सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए गर्व की बात है 10 लाख सैनिकों के सामने चमकौर के मैदान में हुए युद्ध के दौरान बारी-बारी से उनका बलिदान किया गया। #22दिसंबर 1704 को गुरु गोविंद साहिब के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और फिर जुझार सिंह शहीद हुए। #27_दिसंबर 1704 में गुरुगोविंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया।। शत शत नमन 🙏🙏 सिख धर्म के दसवें गुरु, खालसा पंथ के संस्थापक, शौर्य, वीरता, त्याग की मूर्ति, अद्वितीय नेतृत्व कौशल, सरबंसदानी पूजनीय #गुरु गोविन्द सिंह जी के गुरु गद्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। अज दे दिन कलगी धर पातशाह साहिब श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने माता गुजर कौर जी ते सिंघा दे कहिन ते परिवार समेत श्री आनंदगढ़ साहिब दा किला छड़ियां सी । कॉम तो अपना सरबंस वारण वाले दशम पातशाह गुरू गोविंद सिंह जी दे चरना च कोटि कोटि प्रणाम । ਅੱਜ ਦੇ ਦਿਨ ਕਲਗੀਧਰ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਸਾਹਿਬ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਮਾਤਾ ਗੁਜਰ ਕੌਰ ਜੀ ਤੇ ਸਿੰਘਾਂ ਦੇ ਕਹਿਣ 'ਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਸਮੇਤ ਸ੍ਰੀ ਅਨੰਦਗੜ੍ਹ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡਿਆ ਸੀ। ਕੌਮ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਸਰਬੰਸ ਵਾਰਨ ਵਾਲੇ ਦਸਮ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਜੀ ਦੇ ਚਰਨਾਂ 'ਚ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਣਾਮ 🙏 #ShahidiHafta #SriGuruGobindSinghJi #waheguruji ੴ #ਸਤਿਨਾਮ #ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ 🙏🙏 #gurugobindsinghji #GuruGaddiDiwas #MS_Kamboj #charsahibzade #gurugobindsinghji #GovindSingh #RSSorg #sikh #sikhhistory

 

 कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचन्द का गोदान एक बेहतरीन उपन्यास है,, उनके समय पर रही समस्याएें जिसमें गरीबों की दयनीय स्थिति, अमीरों के द्वारा गरीबों को लूटने का षडयन्त् और #जातिवाद का बहुत ही सुन्दरता से मार्मिक वर्णन है,,

       देखा जाये तो आज भी ये बुनियादी समस्याऐं वर्तमान में भी जस की तस बनी हुई हैं,,


इसी उपन्यास से -


      मातादीन #पंडित का सिलिया #चमारिन से प्रेम हो गया है,, वह उसे अपने घर बिन विवाह किये रखता है,, इससे खिन्न होकर एक दिन सिलिया के माता-पिता चाचा और भाई सूरज ढलने से पूर्व मातादीन को घेर लेते हैं,, यहाँ सिलिया के परिवार वाले जिद पर होते हैं,

     वह मातादीन से कहते हैं या तो तू चमार बन जा या फिर सिलिया को पंडिताईन बना कर रख,, हमारी ऐसे बेइज्जती न करवा,, 

     इस पर विवाद बढ़ जाता है,, सिलिया के परिवार वाले पकड़कर जबरदस्ती एक मीट का टुकड़ा मातादीन के मुँह से छुआ देते हैं,, और शोर मचाते हुए चले जाते हैं,, इस बात पर इधर मातादीन के बिरादरी के लोग उसे धर्म और बिरादरी से निष्कासित कर देते हैं,,

     गाँव के लोग कहते हैं- मातादीन तेरा धर्म भ्रष्ट हो गयो है तोए अब घोर प्रायश्चित करनो पड़ेगो,, तूझे जा चमारिन सिलिया को घर में न रखने पड़ेगो,,


  मातादीन संकट में पड़ जाता है, धर्म बिरादरी से अलग होके जाये कहाँ और सिलिया भी तो उसके बच्चे की माँ बनने वाली है उसे कहाँ छोड़े,, घोर दुविधा में फँसा होता है,, पिता की डाँट खाके बहुत सुनने के बाद वह धर्म शुद्धिकरण प्रायश्चित के लिए तैयार हो जाता है,,

          बहुत खुशामद के बाद काशी के कुछ पंडित प्रायश्चित कराने को तैयार हो जाते,, मातादीन का काफी खर्चा हो जाता है,, उसे फिर से ब्राह्मण बना दिया जाता है,, उस दिन बहुत बड़ा हवन हुआ, बहुत सारे ब्राह्मणों को भोजन कराया, मन्त्र श्लोक पढ़े गये,, मातादीन को शुद्ध गोबर और गौमूत्र खाना-पीना पड़ा,, गोबर से उसका मन पवित्र हो गया, गौमूत्र से उसके अशुचिता के कीटाणूँ मर गये,, लेकिन एक तरह से प्रायश्चित से सचमुच वह पवित्र हो गया,, हवन के अग्नि-कुण्ड में उसकी मानवता निखर गयी,,  हवन की ज्वाला के प्रकाश से उसने धर्म-सतम्भों को परख लिया,,

           उस दिन से उसे धर्म के नाम से चिढ़ हो गयी,, उसने जनेऊ उतार फेंका और पुरोहितों को गंगा में डुबो दिया,, अब वह पक्का खेतिहर था,, जबकि विद्वानों ने उसका ब्राह्मणत्व स्वीकार कर लिया था,, लेकिन अब जनता उसके हाथ से पानी तक नहीं पीती है, जनता उससे लगन का विचार, मूहर्त पूछती हैं,, लोग उसे पर्व के दिन दान दक्षिणा भी देते हैं, लेकिन कोई भी उसे अपना बर्तन छूने नहीं देते हैं,,,

          जिस दिन मातादीन और सिलिया माँ - बाप बनते हैं,, उस दिन मातादीन बहुत खुश होता है और जमके भांग पीता है,, बच्चे के प्रति उसका प्रेम दृण जागृत होता है,, लेकिन मातादीन के साथ हुई घटना के बाद से सिलिया और मातादीन अलग अलग रहते हैं,, सिलिया होरी के घर के पास झोपड़ी में रहती है,, जब सिलिया रोजना बाहर मजूरी करने जाती है तो मातादीन बाहर से ही बच्चे को टकटकी लगाये जीभर के देखता रहता है,, लेकिन वह उसे गोद खिलाने से डरता है, कि कहीं सिलिया को पता न चल जाये और उससे ज्यादा नाराज न हो जाये,, उसका बच्चा अब डेढ़ साल का हो गया है, बहुत शरारती है,, बहुत प्यारा, सुन्दर छवि,, पास पड़ोस के लोग उसे बहुत प्यार करते हैं,,

          एक दिन खूब ओले गिरे,, सिलिया घास लेकर बाजार गयी हुई थी,, रामू (बच्चे का नाम) अब बैठने और बकवाँ चलने लगा था,, आँगन में पड़े बिनौले(ओले) बतासे समझ कर दो चार खा लिए,, रात को तेज ज्वर आ गया,, सुबह निमोनिया हो गया,, तीसरे दिन संध्या ढले सिलिया की गोद में बच्चे के प्राण निकल गये,,

         मातादीन उस दिन खुल गया,, परदा होता है हवा के लिए,, आँधी आती है तो परदा उठा कर रख दिये जाते हैं ताकि आँधी के साथ उड़ न जाये,, उसने शव को दोनों हथेलियों पर उठा लिया और अकेला नदी के किनारे तक ले गया,, आठ दिन तक उसके हाथ सीधे न हो सके,, उस दिन वह जरा भी नहीं लजाया, जरा सा भी नहीं झिझका,,

        और किसी ने कुछ कहा भी नहीं,, वल्कि उसके साहस और दृणता की तारीफ की,, होरी ने कहा यही मरद का धरम है,, जिसकी बाँह पकड़ी, उसे क्या छोड़ना,, धनिया ने होरी की बाँह पकड़ी और आँखे तरेरकर कहा मत बखान करो जी जलता है,, यह मरद है? मैं ऐसे मरद को नामरद कहती हूँ,, जब बाँह पकड़ी थी, तब क्या दूध पीता था, कि सिलिया ब्राह्मणी हो गयी थी?

        एक महीना बीत गया था,, सिलिया फिर से मजूरी करने लगी थी,, सिलिया ने खेत से जौ के बाल चुनकर टोकरी में रख लिए और घर जाना चाहती थी,,

        सहसा किसी की आहट पाकर वह चौंक पड़ी,, पीछे से आकर सामने मातादीन खड़ा हो गया और बोला कब-तक रोये जायेगी सिलिया! रोने से वह वापस तो न आ जायेगा, ये कहते ही वह रो पड़ा,,

       सिलिया आवाज संभालकर बोली, आज इधर कैसे आ गये?

       इधर से जा रहा था तुझे बैठा देखा तो चला आया,,

सिलिया मातादीन से तुम तो उसे खेला भी न पाये,,

     नहीं सिलिया, एक दिन खेलाया था,,

    'सच?

     

     'सच,!'

     मैं कहाँ थी?

     तू बाजार गयी थी,,

     रोया तो नहीं था तुम्हारी गोद में?

     नहीं सिलिया हँसता था,,

     सच?'

     सच!'

     वस एक दिन ही खेलाया?

     हाँ! लेकिन देखने रोज आता था,, जी भरके देखता और चला जाता,,

     तुम्हीं को पड़ा था,,

     मुझे तो पछतावा होता है कि नाहक उस दिन उसे गोद में लिया,, यह मेरे पापों का दण्ड है,,

     सिलिया की आँखों में क्षमा झलक रही थी,, उसने टोकरी सर पर रखी और घर को चली,, मातादीन भी उसके साथ साथ चला,,

     सिलिया ने कहा मैं तो अब धनिया काकी के बरौठे में सोती हूँ,, अपने घर में अच्छा नहीं लगता,,

     धनिया रोज मुझे समझाती थी,,

     सच?

     हाँ जब मिलती तो समझाने लगती थी,,

     गाँव के समीप आकर सिलिया ने कहा अच्छा, इधर अपने घर जाओ, कोई पंडित देख न ले,,

     मातादीन ने गर्दन उठा कर कहा मैं अब किसी से नहीं डरता,,

     घर से निकाल देंगे तो कहाँ जाओगे?

     मैंने अपना घर बना लिया है,,

     सच?

     हाँ, सच!'

     कहाँ मैंने तो नहीं देखा?

     चल तो दिखाता हूँ,,

     दोनों आगे बढ़े,, होरी के घर के पास पहुँचे,, मातादीन उसके पिछवाड़े जाकर सिलिया की झोपड़ी के द्वार के सामने खड़ा हो गया और बोला यही हमारा घर है,,

     सिलिया ने अविश्वास क्षमा, व्यंग्य और दुःख भरे स्वर में कहा- ये तो सिलिया चमारिन का घर है,,

     मातादीन ने टाट का दरवाजा खोलते हुए कहा, ये मेरी देवी का मन्दिर है,,

     सिलिया की आँखें चमकने लगीं,, बोली मन्दिर है तो एक लोटा पानी उड़ेल कर चले जाओगे,,

     मातादीन ने उसके सर पर रखी टोकरी उतारते हुए कम्पित स्वर में कहा-नहीं सिलिया, अब तेरे शरण में रहूँगा, तेरी पूजा करूँगा,, जब तक प्राण हैं,,

     झूठ कहते हो?

     नहीं मैं तेरे चरण छूकर कहता हूँ,,

     सिलिया ने दियासलाई से कुप्पी जलाई,, एक किनारे मिट्टी का घड़ा था, दूसरी ओर चूल्हा था जहाँ दो तीन पीतल और लोहे के बाँसन मँजे पड़े थे,, बीच में पुआल बिछा था,, यही सिलिया का बिस्तर था,, मातादीन पुआल पर बैठ गया,, कलेजे में हूक-सी उठ रही थी,, जी चाहता था जोर से खूब रोये,,

     सिलिया ने उसकी पीठ पर हाथ रख कर कहा-तुम्हें कभी मेरी याद आती थी?

    मातादीन ने उसका हाथ अपने हृदय से लगा कर कहा-तू हरदम मेरी आँखों के सामने फिरती रहती थी,, तू भी मुझे कभी याद करती थी?

     'मेरा तो तुमसे जी जलता था,,

     'और दया नहीं आती थी?

     कभी नहीं,,!

     तो भुनेसरी की याद आती थी?

     अब गाली मत दो!,, मैं डर रही हूँ कि गाँव वाले क्या कहेंगे?

     जो भले आदमी हैं, वो कहेंगे यही इसका धरम है,, जो बुरे आदमी हैं, उनकी मैं परवा नहीं करता,,

     और तुम्हारा खाना कौन पकायेगा?'

 

     'मेरी रानी सिलिया,,'

     'तो ब्राह्मण कैसे रहोगे?

     'मैं ब्राह्मण नहीं चमार ही रहना चाहता हूँ,,'

     सिलिया ने उसकी बाँहों में अपनी बाँहें डाल दीं,,,।



बाल वनिता महिला आश्रम 


20 दिसंबर की ही रात थी, (20 दिसम्बर 1704), "गुरु गोबिंद सिंह जी" ने अपने परिवार और 400 अन्य सिखों के साथ आनंदपुर साहिब का किला छोड़ दिया और निकल पड़े.. 


उस रात #भयंकर सर्दी थी और मावठे की बारिश हो रही थी..


सेना 25 किलोमीटर दूर सरसा नदी के किनारे पहुंची ही थी कि मुग़लों ने रात के अंधेरे में ही आक्रमण कर दिया...

बारिश के कारण नदी में उफान था..

कई सिख शहीद हो गए... कुछ नदी में ही बह गए...

इस अफरातफरी में परिवार बिछुड़ गया..

माता गूजरी और दोनों छोटे साहिबजादे गुरु जी से अलग हो गए... दोनो बड़े साहिबजादे गुरु जी के साथ ही थे..


उस रात गुरु जी ने एक खुले मैदान में शिविर लगाया .. अब उनके साथ दोनो बड़े साहिबजादे और 40 सिख योद्धा थे ...

शाम तक आपने चौधरी रूप चंद और जगत सिंह की कच्ची गढ़ी में मोर्चा सम्हाल लिया..

अगले दिन जो युद्ध हुआ उसे इतिहास में "2nd Battle Of Chamkaur Sahib" के नाम से जाना जाता है..


उस युद्ध में दोनों बड़े साहिबजादे और 40 अन्य सिख योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए...


उधर दोनो छोटे साहिबजादे जो 20 कि रात को ही गुरु जी से बिछुड़ गए थे माता गुर्जरी के साथ सरहिंद के किले में कैद कर लिए गए थे..


सरहिन्द के नवाब ने दबाव डाला कि धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लो नही तो दीवार में जिंदा चुनवा दिया जाएगा.. 

दोनो साहिबज़ादों ने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया पर धर्म नही छोड़ा..


गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 से 27 दिसम्बर के बीच अपने 4 बेटे देश-धर्म की खातिर वार दिए....

माता गूजरी ने दोनो बच्चों के साथ ये ठंडी रातें सरहिन्द के किले में, ठिठुरते हुए गुजारी थीं..


बहुत सालों तक.. जब तक कि पंजाब के लोगों पे इस आधुनिकता का बुखार नही चढ़ा था.. ये एक सप्ताह यानि कि 20 से ले के 27 दिसम्बर तक लोग शोक मनाते थे और जमीन पे सोते थे ..

#Vnita

जो बोले सो निहाल ..

सत श्री अकाल ..

बाल वनिता महिला आश्रम #राधे_राधे

हिंदू समाज के कुछ लोग आज  इतने नीचे गिर गये है कि #गुरु_गोविंद_सिंह के #बलिदान को भूल कर के क्रिसमस डे मनाने लगे है

सनातन धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने #महाबलिदान दिया जो युगो युगो तक याद रहेगा बताया कि चारों साहिबजादों और माता गुजरी का बलिदान  सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए गर्व की बात है 10 लाख सैनिकों के सामने चमकौर के मैदान में हुए युद्ध के दौरान बारी-बारी से उनका बलिदान किया गया। #22दिसंबर 1704 को  गुरु गोविंद साहिब के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और फिर जुझार सिंह शहीद हुए। #27_दिसंबर 1704 में गुरुगोविंद सिंह के दो साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया।।


शत शत नमन 🙏🙏


सिख धर्म के दसवें गुरु, खालसा पंथ के संस्थापक, शौर्य, वीरता, त्याग की मूर्ति, अद्वितीय नेतृत्व कौशल, सरबंसदानी पूजनीय #गुरु गोविन्द सिंह जी के गुरु गद्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। 

अज दे दिन कलगी धर पातशाह  साहिब श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने माता गुजर कौर जी ते सिंघा दे कहिन ते परिवार समेत श्री आनंदगढ़ साहिब दा किला छड़ियां सी । कॉम तो अपना सरबंस वारण वाले दशम पातशाह गुरू गोविंद सिंह जी दे चरना च कोटि कोटि प्रणाम ।

ਅੱਜ ਦੇ ਦਿਨ ਕਲਗੀਧਰ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਸਾਹਿਬ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਮਾਤਾ ਗੁਜਰ ਕੌਰ ਜੀ ਤੇ ਸਿੰਘਾਂ ਦੇ ਕਹਿਣ 'ਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਸਮੇਤ ਸ੍ਰੀ ਅਨੰਦਗੜ੍ਹ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡਿਆ ਸੀ। ਕੌਮ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਸਰਬੰਸ ਵਾਰਨ ਵਾਲੇ ਦਸਮ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਜੀ ਦੇ ਚਰਨਾਂ 'ਚ ਕੋਟਿ ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਣਾਮ 🙏


#ShahidiHafta  #SriGuruGobindSinghJi #waheguruji


ੴ #ਸਤਿਨਾਮ #ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ 🙏🙏


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Eagle Club 23 india punjab: ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाब विकिपीडिया । Eagle Club 23 WikipediaMarch 9, 2023 by वनिता कासनियां पंजाबहैलो दोस्तों आज हम आप लोगों को ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाब विकिपीडिया बताने वाले हैं, अगर आप भी Eagle Club 23इंडिया पंजाब के बारे में सारी जानकारी जानना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आयें हैं, दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में Eagle Club 23 इंडिया पंजाब से जुड़ी सभी जानकारी को देंगे लेकिन इसके लिए आप लोगों को इस आर्टिकल को पूरा ध्यान से पढ़ना होगा तभी आप ये सभी जानकारीयों को जान पाएंगे, तो चलिए अब जान लेते हैंEagle Club 23 इंडिया पंजाब क्या होता है ?ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाब:- दोस्तों Eagle Club 23 इंडिया पंजाब एक E- Learning और Earning प्लेटफार्म है, इस Eagle Club 23 में लोग सोशल मीडिया के जरिए लोगों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करते हैं आप जितने ज्यादा लोगों को अपने साथ जोड़ सकते हैं आपको उतना ही ज्यादा पैसा मिलेगा और इस Club के लोग Zoom meeting के जरिए से लोगों को अपने बिजनेस प्लान के बारे में बताते हैं । इस Eagle Club 23 की शुरुआत मनीष चहल और विक्की मोर के द्वारा 12 सितम्बर, 2021 में किया गया था ।Eagle Club 23 इंडिया पंजाब में क्या सिखाया जाता है ?Eagle Club 23 इंडिया पंजाब :- दोस्तों आप लोगों को बता दें कि अन्य नेटवर्क मार्केटिंग कंपनियों की तरह इनका भी बिजनेस प्लान होता है । दोस्तों इसमें ये सिखाया जाता है कि खुद को हम इस लायक बनायें की हम एक बिजनेस करने के काबिल बन सकें फिर इसमें एक बिजनेस ग्रो करना सिखाया जाता है और वहां से जो कमाई करें उसको मल्टीप्लाई कैसे करें ये सभी Eagle Club 23 india में सिखाया जाता है ।Eagle Club 23 इंडिया पंजाब के संस्थापक (Founder) कौन हैं ?Eagle Club 23 इंडिया पंजाब Founder :- दोस्तों ईगल क्लब 23 इंंडिया पंजाब के संस्थापक यानी Founder की बात करें तो इसके संस्थापक मनीष चहल और विक्की मोर हैं और ये हरियाणा के हिसार जिले के रहने वाले हैं । इन लोगों ने ही नेटवर्क मार्केटिंग जैसे कंपनी को चालू किया है जिसका नाम Eagle Club 23 इंंडिया पंजाब है ।Eagle Club 23 इंडिया पंजाब Fake है या Real ?दोस्तों आप लोगों को बता दें कि Eagle Club 23 इंडिया पंजाब कोई बड़ी कंपनी नहीं है, बताया गया है की Eagle Club 23 इंडिया पंजाब यह कुछ लोगों का एक समूह है जो सोशल मीडिया के जरिए लोगों को अपना वीडियो दिखाकर उन्हें अपनी ओर लाते हैं । दोस्तों अभी ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाब से जुड़ी कोई विशेष जानकारी नही है, इसलिए दोस्तों Eagle Club 23 इंडिया पंजाब या इन जैसी कंपनियों पर अंधा विश्वास करना सही नहीं है । कुल मिलाकर Eagle Club 23इं पंजाब पर आंख बंद करके विश्वास करना बिल्कुल भी सही नहीं होगा, अगर आप अपने पैसे को जोखिम में डालकर रिस्क लेकर ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाब में आना चाहते है तो आप सावधान होकर आएं क्योकि इसमें आपका पैसा के साथ साथ टाइम भी लगने वाला है ।Eagle Club 23 इंडिया पंजाब का लोगो कैसा होता है ?ईगल क्लब 23इंडिया पंजाब का लोगो (Logo) ये है ।ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाबक्या आप Eagle Club 23 भकर सकते हैं या नहीं ?दोस्तों Eagle Club 23इंडिया पंजाब एक E- Learning और Earning प्लेटफार्म है, Eagle Club 23 इंडिया पंजाब पर अभी भरोसा करना मुश्किल लग रहा है क्योंकि इसके बारे में कोई भी ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, इसके साथ साथ अभी इनकी खुद की अपनी वेबसाइट भी नहीं है ये इंस्टाग्राम, फेसबुक तथा यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके अपनी मार्केटिंग करते है, इसलिए Eagle Club 23 इंडिया पंजाब या इन जैसे कंपनियों पर भरोसा करना सही नहीं है । आप लोगों को बता दें कि इन जैसी कंपनियां लोगों से पैसे लेकर चली भी गई है और ऐसे लोगों का कुछ पता ठिकाना नहीं होता है ।जानिए Eagle Club 23 इंडिया पंजाब का इंस्टाग्राम अकाउंट ?दोस्तों ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाब का इंस्टाग्राम अकाउंट की बात करें तो आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके Eagle Club 23 इंडिया पंजाब की इंस्टाग्राम आईडी पर जा सकते हैं ।https://instagram.com/eagleclub23?igshid=YmMyMTA2M2Y=Eagle club 23 इंडिया पंजाब से जुड़ी कुछ प्रश्न और उत्तर (FAQs)Eagle Club 23 इंडिया पंजाब क्या है ?Eagle club 23 इंडिया पंजाब की ऑफिशियल वेबसाइट क्या है ?Eagle club 23 इंडिया पंजाब के संस्थापक कौन हैं ?Eagle Club 23 इंडिया पंजाब की Instagram ID ?इस Eagle Club 23 इंडिया पंजाब में क्या सिखाया जाता है ?Eagle Club 23 इंडिया पंजाब : ईगल क्लब 23 इंडिया पंजाब व्हाट्सएप ग्रुप लिंक । भी हैLeave a CommentCommentNameEmailWebsiteSave my name, email, and website in this browser for the next time I comment.Post CommentSearchSearchRecent PostsEagle Club 23 : ईगल क्लब 23 विकिपीडिया । Eagle Club 23 Eagle Club 23 : ईगल क्लब 23 व्हाट्सएप ग्रुप लिंक ।Eagle Club 23 india Punjab :बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 🪴🙏🙏🌹

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