Wednesday, February 8, 2023
बिल्ली का रोना क्यों माना जाता है अपशकुन? मिलते हैं ये अशुभ संकेत By वनिता कासनियां पंजाब 1हमारे जीवन में घटने वाली कई घटनाओं को शकुन-अपशकुन से जोड़ कर देखा जाता है. शकुन शास्त्र में कुछ ऐसी बातें बताई गई हैं जो शुभ और अशुभ का संकेत देती हैं. शकुन शास्त्र में बिल्ली का रोना अपशकुन माना जाता है. बिल्ली का रोना कई अशुभ संकेत देता है.Shakun Apshakun: बिल्ली का रोना क्यों माना जाता है अपशकुन? मिलते हैं ये अशुभ संकेत2बिल्ली का रोना कुछ गलत होने का अंदेशा देता है. माना जाता है कि बिल्ली घर में नकारात्मक ऊर्जा लेकर आती है. तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले बिल्ली को काली शक्ति का प्रतीक मानते हैं.Shakun Apshakun: बिल्ली का रोना क्यों माना जाता है अपशकुन? मिलते हैं ये अशुभ संकेत3बिल्ली का बार-बार घर में आना अशुभ माना जाता है. बिल्ली के रोने की आवाज बहुत डरावनी होती है. यह मन में भय पैदा करता है. बिल्ली अगर घर में आकर रोने लगे तो माना जाता है कि घर के किसी सदस्य के साथ अनहोनी होने वाली है.Shakun Apshakun: बिल्ली का रोना क्यों माना जाता है अपशकुन? मिलते हैं ये अशुभ संकेत4माना जाता है कि बिल्ली को भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास पहले ही हो जाता है. बिल्लियों का आपस में लड़ना धनहानि और गृहकलह का संकेत देता है.Shakun Apshakun: बिल्ली का रोना क्यों माना जाता है अपशकुन? मिलते हैं ये अशुभ संकेत5बिल्ली का बाईं तरफ से रास्ता काटना भी अशुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इससे आप जिस कार्य के लिए जा रहे हैं वो सफल नहीं होता है.Shakun Apshakun: बिल्ली का रोना क्यों माना जाता है अपशकुन? मिलते हैं ये अशुभ संकेत6बिल्ली घर में रखा दूध चुपके से आकर पी जाए तो ये धन नाश होने का संकेत होता है. वहीं दिवाली के दिन बिल्ली का घर में आना शुभ माना जाता है. माना जाता है कि इससे साल भर घर में धन का आगमन होता है.
Monday, February 6, 2023
महाभारत की शुरुआत – इतने बड़े ग्रन्थ को लिखने की क्या …By वनिता कासनियां पंजाब महाभारत की शुरुआतमहाभारत की शुरुआत स्वर्ग से होती है । महाभारत में बताया गया है कि किस तरह स्वर्ग से देवी, देवता, वसु इत्यादि पृथ्वी पर आए जिन्होंने महाभारत की शुरुआत की ।महाभारत ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने की थी । महाभारत मे कुल 1 लाख श्लोक हैं और 18 पर्व हैं । जब महर्षि वेदव्यास जी के हृदय मे महाभारत ग्रंथ प्रकाशित हुआ तो उन्होंने इसे एक लाख श्लोक वाले ग्रंथ महाभारत के रूप मे शिव पुत्र गणेश से लिखवाया ताकि इसका प्रचार प्रसार हो सके । वेदव्यास जी ने सबसे पहले वेदों को 4 भागों मे विभाजित किया और फिर उसके बाद उपनिषदों की रचना की । उसके बाद पुराण और सबसे अंत मे इतिहास लिखे जिनमे महाभारत और रामायण आते हैं ।इसी तरह की धार्मिक जानकारी से युक्त पोस्ट पड़ते रहने के लिए हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें ।महाभारत की शुरुआत मे राजा वशु का उल्लेख है जो पौरवा वंश से संबंधित थे । राजा वशु ने कुछ समय तक कुशलता से राज्य किया और एक दिन अध्यात्म का विचार करके वैरागी होए गए । जब वे ध्यान लगा रहे थे तो इंद्र को लगा कि कहीं वे इंद्र की पदवी ना छीन लें इसलिए इंद्र उनके पास आए और उनसे ध्यान रोकने को कहा । इंद्र ने वशु को समझाया कि वे एक कुशल राजा हैं इसलिए उनके राज्य मे सारी प्रजा भगवान की भक्ति कर सकेगी इसलिए उन्हें वापिस जाकर राज्य संभालना चाहिए ।राजा वशु बहुत भोले थे इसलिए इंद्र की बात मान गए । इंद्र को इस बात से बड़ी प्रसंत्ता हुई और उन्होंने राजा वशु को एक दिव्य रथ दिया जो तीनो लोकों मे आसानी से जा सकता था । एक हार भी दिया जो राजा को हमेशा जवान रखने का काम करता था और एक दिव्य खंबा दिया जो राजा वशु की प्रजा को उनके अनुकूल रखने का काम करता था । राजा वशु ने वो खंबा अपने राज्य के बीचों बीच गाड़ दिया और खुद इंद्र का दिव्य रथ लेकर दूसरे लोकों मे घूमने लगे ।राजा वशु ने गिरिका से शादी की जो कि शुक्तिमति की पुत्री थी । एक बार जब राजा वशु जंगल मे आखेट कर रहे थे तब उन्होंने दिव्य शक्ति से अपना वीर्य लिया और एक चील को दे दिया । उन्होंने चील से कहा कि वह इसे उनकी पत्नि तक पहुंचा दे ताकि उनकी संतान उत्पति सके । इस चील को रास्ते मे एक और चील ने देख लिया और दोनो लड़ने लगे । लड़ाई के कारण राजा वशु का वीर्य यमुना नदी मे गिर गया जिसे एक मछली ने ग्रहण किया जिससे उसे मत्स्य नाम का पुत्र और सत्यवती नाम की पुत्री प्राप्त हुई । जब एक मछुआरे ने इस मछली को पकड़ा तो उसके पेट से उसे ये दोनो बालक प्राप्त हुए ।जब मछुआरा उन बच्चों को राजा वशु के पास लेकर गया तो वे उन्हें पहचान नहीं पाए लेकिन उन्होंने जब ध्यान लगाकर देखा तो उन्हें पता चाला कि ये दोनो उन्हीं के बच्चे हैं । राजा वशु ने पुत्र को अपने पास रख लिया और पुत्री को मछुआरे को दे दिया । सत्यवती के शरीर से मछली की बदबू आया करती थी जिससे वे बड़ी परेशान रहती थी । एक दिन परासर मुनि उनके पास से जुगर रहे थे तभी उन्हें आभास हुआ कि यह समय भगवान के अवतार का समय है । उन्होंने अपने पास सत्यवती को देखा और उनसे इस कार्य के लिए मंजूरी मांगी । परासर मुनि ने सत्यवती से विवाह किया और भगवान वेदव्यास जी का सत्यवती से प्रकाट्य हुआ ।परासर मुनि ने सत्यवती को आशीर्वाद दिया कि उनके शरीर से आने वाली बदबू अब खुशबू मे बदल जायेगी । उसी वरदान के साथ सत्यवती का नाम पड़ा योजनगंधा क्योंकि उनके शरीर से अब एक योजन दूर तक खुशबू आया करती थी । साथ ही परासर मुनि ने सत्यवती को यह आशीर्वाद दिया कि वे इस क्रिया के बाद भी कुंवारी ही रहेंगी ।अभी तक पृथ्वी पर राक्षसी प्रवत्ति वाले राजाओं का बोलबाला बहुत बड़ गया था और पृथ्वी माता ने ब्रह्मा जी से विनती की कि वे कुछ सहायता करें । ब्रम्हा जी भगवान विष्णु के पास गए तब भगवान ने कहा कि वे शीघ्र ही अवतरित होंगे और पृथ्वी का बोझा हल्का करेंगे ।क्यों हुआ गंगा पुत्र भीष्म का पृथ्वी पर जन्मस्वर्ग में आठ वसु हुआ करते थे जिन्होंने वसिष्ठ मुनि की गाय चुरा ली थी जिस कारण उन्हें वशिष्ठ मुनि द्वारा पृथ्वी पर मनुष्य बनने का श्राप मिला था । स्वर्ग में देवता, वसु, गंधर्व, अप्सरा इत्यादि रहा करते हैं । जब उन्होंने क्षमा मांगी तो वसिष्ठ मुनि ने उन्हें जन्म के साथ ही मृत्यु प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया जिससे उन्हें मानव जीवन के कष्ट ना भोगने पड़े और वे जल्द ही स्वर्ग वापिस आ जाएं । वसिष्ठ मुनि ने कहा कि एक वसु जिसने गाय को चुराने की योजना बनाई थी उन्हें पृथ्वी पर लंबे समय रहना पड़ेगा ।इसी समय गंगा माता को भी पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप मिला हुआ था । वासुओं ने गंगा माता से उनके पुत्र बनने की विनती की । गंगा मां ने हां बोल दिया । गंगा माता पृथ्वी पर आईं और उन्होंने महाराज शांतनु से विवाह किया । गंगा माता ने शांतनु के समक्ष दो शर्त रखीं । पहली थी कि वे कभी भी गंगा माता से ऊंची आवाज में बात नहीं करेंगे और दूसरा उनसे किसी भी प्रकार का कोई सवाल नहीं पूछेंगे । शांतनु महाराज ने हां बोला और इन दोनो शर्त पर उनकी शादी हो गई ।जब इनके पुत्र हुए तो गंगा माता ने सारे पुत्र गंगा नदी में बहा दिए और जब वे आखिरी पुत्र को बहाने ले जाने लगीं तो शांतनु ने उनसे सवाल पूछ लिया कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं । गंगा माता ने कहा कि शांतनु ने शर्त तोड़ी है इसलिए उनका विवाह संबंध अब टूट चुका है । ऐसा कहकर गंगा माता वहां से चली गईं । शांतनु महाराज के आखिरी बचे पुत्र का नाम देवव्रत था जो अब उनके राज पाट को संभालने लगे थे ।एक दिन शांतनु महाराज जंगल में शिकार कर रहे थे तभी उन्हें एक अच्छी सुगंध आई जिसका पीछा करते करते वे एक स्त्री से मिले । वो स्त्री सत्यवती थीं जिनपर शांतनु मोहित हो गए और उनसे शादी करने की इच्छा जाहिर की । सत्यवती ने पिता से बात करने को कहा तो महाराज शांतनु उनके पिता के पास गए । पिता ने शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र ही राजा बनेगा ना कि देवव्रत । राजा शांतनु दुखी मन से वापिस चले आये । जब शांतनु को इस बात का पता चला तो उन्होंने सत्यवती के पिता से जाकर इस बारे मे बात की । देवव्रत ने आजीवन ब्राम्हचारी रहने की प्रतिज्ञा ली ताकि सत्यवती के पुत्र ही राजा बने न कि देवव्रत के ।क्यूंकि यह प्रतिज्ञा बहुत ही कठिन थी इसलिए उनका नाम पड़ा भीस्म । इसके बाद शांतनु और सत्यवती का विवाह हुआ और उनको दो पुत्र हुए चित्रांगदा और विचित्रवीर्य । चित्रांगदा बड़े पुत्र थे लेकिन एक युद्ध मे मारे गए जिसके बाद विचित्रवीर्य को राजा बनना था लेकिन उनकी आयु बहुत कम थी जिस वजह से भीष्म ही सारा राज्य संभालते थे । विचित्रवीर्य की शादी के लिए भीष्म ने स्वयंवर से अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण कर लिया । अंबा ने माना कर दिया लेकिन अंबिका और अंबालिका की शादी विचित्रवेर्य के साथ हो गई । विचित्रवीर्य अपनी शादीशुदा जिंदगी में इतने लिप्त हो गए कि कुछ समय बाद ही रोगों ने उनके शरीर को घेर लिया और उनकी मृत्यु हो गई ।धृतराष्ट्र और पांडू का जन्मअब शांतनु के वंश को आगे बड़ाने वाला कोई नहीं बचा था । भीष्म ने सुझाव दिया कि वे किसी ऋषि के माध्यम से अंबिका और अंबालिका से पुत्र प्राप्त कर सकते हैं ताकि उनका वंश आगे बड़ सके । सत्यवती को याद आया कि उनके पुत्र वेदव्यास का कौशल इस कार्य के लिए पर्याप्त है । वेदव्यास जी आए लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी । वेदव्यास जी ने कहा कि अंबा और अंबालिला को एक साल तपस्या करनी होगी उसके बाद उन्हें वेदव्यास जी से पुत्र प्राप्त होंगे ।सत्यवती ने कहा कि इनसे कहां तपस्या होगी इसलिए कोई दूसरा रास्ता बताइए । वेदव्यास जी ने कहा कि अगर दोनो उनके रूप को बर्दाश्त कर लेती है तो इतना पर्याप्त रहेगा । अंबिका ने वेदव्यास जी का भयानक रूप देखकर अपनी आंखें बंद कर लीं और उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम धृतराष्ट्र रखा गया । वहीं अंबालिका ने आंखें तो खुली रखीं लेकिन दर के मारे उनका शरीर पीला हो गया जिससे उन्हे पीले रंग के पुत्र प्राप्त हुए जिनका नाम रखा गया पांडू ।यह भी पड़ें – महाभारत का विराट युद्धपांडवों और कौरवों के जन्म और आपसी मतभेद की कहानी बताई गई है अगले पोस्ट में । अगला पोस्ट पड़ने के लिए यहां क्लिक करें – पांडवों का जन्म । इसी तरह की दिव्य कथाएं पड़ते रहने के लिए हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहां क्लिक करें – बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमCategoriesHindi LiteratueTagsMahabharat katha, Religiousमहाभारत का विराट युद्ध अर्जुन ने अकेले ही कौरवों को हरा दियापांडवों का जन्मबागेश्वर धामधीरेंद्र शास्त्री महाराज का बचपन कैसा थालंका को असल में हनुमान जी ने नहीं जलाया थामोक्ष पाना मुश्किल है या आसानबागेश्वर बाबा से न्यूज़ चैनलों के सीधे सवालबगेश्वर धाम दिव्य दरबार में पत्रकार लेने आए परीक्षालोकप्रियलालच से बचने का उपायश्रृंगी ऋषि कौन थे, श्रृंगी ऋषि एक हिरण से पैदा कैसे हुए?भगवान श्री राम को क्यों कहा जाता है धीर प्रशांतअच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी क्यों हो जाती है ?महाभारत कथाभाग भाग का शीर्षकभाग-1 महाभारत की शुरुआतभाग-2 पांडवों का जन्मभाग-3 कौरवों का जन्मभाग-4 द्रोणाचार्य का गुरुकुलभाग-5 दुर्योधन और कर्ण की मित्रताभाग-6 पांडवों को जलाने का षड्यंत्रभाग-7 पांडव दुर्योधन से छिपकर कहां गएभाग-8 द्रोपदी का विवाहभाग-9 इंद्रप्रस्थ का निर्माण किसने कियाभाग-10 जरासंध को किसने माराभाग-11 शिशुपाल वध, भगवान ने शिशुपाल के 100 पाप क्यों क्षमा किएभाग-12 पांडव और कौरव के बीच चौसर का खेलभाग-13 पांडवों का वनवासजब शकुनी ने कपटपूर्वक चौसर खेला तब भगवान कृष्ण कहां थेभाग-14 अर्जुन और शिव जी का युद्ध, किसकी हुयी जीतभाग-15 अर्जुन की स्वर्ग यात्रा, उर्वशी द्वारा अर्जुन को श्रापभाग-16 राजा नल की कहानी – नल और दमयंती का विवाह कैसे हुआभाग-17 राजा नल की गरीबी, कलयुग ने ईर्ष्यावश सारा राज्य छीन लियाभाग-18 राजा नल की कथा, नल ने अपना राज्य वापिस केसे जीताभाग-19 युधिस्ठिर गए तीर्थ, नारद जी ने बताया प्रयाग तीर्थ का महत्वभाग-20 अगस्त्य मुनि की कहानी, अगस्त्य मुनि ने समुंद्र केसे सुखायाभाग-21 श्रृंगी ऋषि कौन थे, श्रृंगी ऋषि एक हिरण से पैदा कैसे हुए?भाग-22 युवनाश्व राजा की कहानी जिन्होंने एक पुत्र को जन्म दियाभाग-23 पांडवों की स्वर्ग यात्रा, अर्जुन से मिलने के लिए स्वर्ग गएभाग-24 नहुष कौन थे? नहुष इंद्र थे लेकिन एक श्राप के कारण अजगर बन गएभाग-25 पांडवों ने दुर्योधन को गंधर्वों से क्यों बचायाभाग-26 मुद्गल ऋषि की कहानी जो वरदान मिलने के बाद भी स्वर्ग नहीं गएभाग-27 पांडवों ने दुर्वाशा मुनि और 1000 शिष्यों को भोजन कैसे करायाभाग-28 यक्ष युधिष्ठिर संवाद, प्रश्न 1 – व्यक्ति का सच्चा साथी कौनभाग-29 महाभारत विराट पर्व – पांडवों का अज्ञातवासभाग-30 विदुर ने बताये दुष्ट लोगों के लक्षणभाग-31 भगवान श्री कृष्ण स्वयं ही शान्ति दूत बनकर आएभाग-32 महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले दुर्योधन ने क्या कियाभाग-33 महाभारत के युद्ध की पूरी कथा
Sunday, February 5, 2023
*गौमाता की पूजा-अर्चना से नवग्रह भी होते है शांत* *By वनिता कासनियां पंजाब* *हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और इसकी सेवा करने की बात कही गई है*.*मान्यता है कि गाय की सेवा मात्र से व्यक्ति के जीवन के तमाम संकटों का अंत हो सकता है. हिंदू धर्म (Hindu Religion) में गाय को पूज्यनीय माना गया है. कहा जाता है कि बड़े से बड़े कष्ट सिर्फ गौमाता के पूजन से कट जाते हैं क्योंकि गाय में 33 कोटि देवी देवताओं का वास माना गया है. गाय (Cow) की सेवा से सभी देवी देवता प्रसन्न होते हैं, साथ ही परिवार को सुख-समृद्धि**(Prosperity) और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है. गाय की सेवा से कुंडली का कोई भी दोष दूर हो सकता है और पितृदोष आदि के कारण आने वाली बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है. गौमाता की सेवा का जिक्र सिर्फ शास्त्रों में ही नहीं है, बल्कि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने भी गाय के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित किया है और लोगों को गाय की सेवा करने का संदेश दिया है. यदि आपके जीवन में भी कई तरह की परेशानियां हैं तो यहां जानिए गौमाता से जुड़े कुछ ऐसे उपाय जिनसे आपकी हर समस्या का समाधान हो सकता है.**ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की शांति के लिए कई उपाय बताए गए है। शास्त्रों के अनुसार गाय माता को खुश करके भी हम नवग्रहों को शांत कर सकते हैं। गाय माता को हर वार आप ये अन्न खिलाकर खुश कर सकते है। तो आइए जानते है कुछ उपाय:**1. सूर्य ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप रविवार को रोटी के ऊपर थोड़ा सा गुड़ रखकर लाल गाय को खिलाएं। इससे सूर्य ग्रह शुभ फल देने लगेगा।**2. चंद्र ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप सोमवार को रोटी के ऊपर घी लगाकर गाय को खिलाएं। कच्चे या पके चावल को दुध में भिगोकर सफेद गाय को खिलाएं। इससे चंद्र शुभ फल देने लगेगा।*3. मंगल ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप मंगलवार को रोटी पर गुड़ रखकर लाल गाय को खिलाएं। कोई भी मीठा पदार्थ गाय को खिलाने से मंगल ग्रह शुभ फल देने लगता है।4. बुध ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए बुधवार के दिन साबूत मूंग के दाने रखकर सफेद गाय को खिलाएं।5. गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप गुरूवार को घी व हल्दी मिलाकर पीली गाय को खिलाए। चने की दाल और गुड़ मिलाकर खिलाने से गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है।6. शुक्र ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप शुक्रवार को गाय को दही चावल खिलाएं।7. शनि, राहु, केतु के शुभ प्रभाव के लिए आप शनिवार को सरसों का तेल चुपड़कर तिल के कुछ दाने रोटी पर रखकर चितकबरी या काली गाय को खिलाएं।सुख समृद्धि के लिएकहा जाता है कि गाय को खिलाई गई कोई भी चीज सीधे देवी देवताओं तक पहुंच जाती है. इसलिए शास्त्रों में पहली रोटी गाय के लिए निकालने की बात कही गई है. गाय के लिए पहली रोटी निकालने से आपके जीवन की तमाम समस्याएं कट जाती हैं और आपके परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है.पितृ दोष से मुक्ति के लिएअगर आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो जीवन में कोई काम आसानी से नहीं बनता और परिवार पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ता है. इस समस्या से बचने के लिए आप अमावस्या के दिन गाय को रोटी, गुड़, हरा चारा खिलाएं. अगर आप रोजाना गाय की सेवा कर सकें तो और भी बेहतर है. इससे पितृ दोष दूर होने के साथ अन्य ग्रह भी शांत होंगे
*गौमाता की पूजा-अर्चना से नवग्रह भी होते है शांत*
*By वनिता कासनियां पंजाब*
*हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और इसकी सेवा करने की बात कही गई है*.
*मान्यता है कि गाय की सेवा मात्र से व्यक्ति के जीवन के तमाम संकटों का अंत हो सकता है. हिंदू धर्म (Hindu Religion) में गाय को पूज्यनीय माना गया है. कहा जाता है कि बड़े से बड़े कष्ट सिर्फ गौमाता के पूजन से कट जाते हैं क्योंकि गाय में 33 कोटि देवी देवताओं का वास माना गया है. गाय (Cow) की सेवा से सभी देवी देवता प्रसन्न होते हैं, साथ ही परिवार को सुख-समृद्धि*
*(Prosperity) और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है. गाय की सेवा से कुंडली का कोई भी दोष दूर हो सकता है और पितृदोष आदि के कारण आने वाली बाधाओं से भी मुक्ति मिलती है. गौमाता की सेवा का जिक्र सिर्फ शास्त्रों में ही नहीं है, बल्कि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने भी गाय के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित किया है और लोगों को गाय की सेवा करने का संदेश दिया है. यदि आपके जीवन में भी कई तरह की परेशानियां हैं तो यहां जानिए गौमाता से जुड़े कुछ ऐसे उपाय जिनसे आपकी हर समस्या का समाधान हो सकता है.*
*ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की शांति के लिए कई उपाय बताए गए है। शास्त्रों के अनुसार गाय माता को खुश करके भी हम नवग्रहों को शांत कर सकते हैं। गाय माता को हर वार आप ये अन्न खिलाकर खुश कर सकते है। तो आइए जानते है कुछ उपाय:*
*1. सूर्य ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप रविवार को रोटी के ऊपर थोड़ा सा गुड़ रखकर लाल गाय को खिलाएं। इससे सूर्य ग्रह शुभ फल देने लगेगा।*
*2. चंद्र ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप सोमवार को रोटी के ऊपर घी लगाकर गाय को खिलाएं। कच्चे या पके चावल को दुध में भिगोकर सफेद गाय को खिलाएं। इससे चंद्र शुभ फल देने लगेगा।*
3. मंगल ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप मंगलवार को रोटी पर गुड़ रखकर लाल गाय को खिलाएं। कोई भी मीठा पदार्थ गाय को खिलाने से मंगल ग्रह शुभ फल देने लगता है।
4. बुध ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए बुधवार के दिन साबूत मूंग के दाने रखकर सफेद गाय को खिलाएं।
5. गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप गुरूवार को घी व हल्दी मिलाकर पीली गाय को खिलाए। चने की दाल और गुड़ मिलाकर खिलाने से गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है।
6. शुक्र ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए आप शुक्रवार को गाय को दही चावल खिलाएं।
7. शनि, राहु, केतु के शुभ प्रभाव के लिए आप शनिवार को सरसों का तेल चुपड़कर तिल के कुछ दाने रोटी पर रखकर चितकबरी या काली गाय को खिलाएं।
सुख समृद्धि के लिए
कहा जाता है कि गाय को खिलाई गई कोई भी चीज सीधे देवी देवताओं तक पहुंच जाती है. इसलिए शास्त्रों में पहली रोटी गाय के लिए निकालने की बात कही गई है. गाय के लिए पहली रोटी निकालने से आपके जीवन की तमाम समस्याएं कट जाती हैं और आपके परिवार में सुख समृद्धि का वास होता है.
पितृ दोष से मुक्ति के लिए
अगर आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो जीवन में कोई काम आसानी से नहीं बनता और परिवार पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ता है. इस समस्या से बचने के लिए आप अमावस्या के दिन गाय को रोटी, गुड़, हरा चारा खिलाएं. अगर आप रोजाना गाय की सेवा कर सकें तो और भी बेहतर है. इससे पितृ दोष दूर होने के साथ अन्य ग्रह भी शांत होंगे
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